इस वक्त दुनिया भर में अगर किसी एक चीज की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है तो वह है कोविड-19 वैक्सीन की। कोविड-19 की वैक्सीन किसे सबसे पहले मिलेगी, यह वैक्सीन कितनी प्रभावशाली होगी इस तरह के सवाल आए दिनों लोगों के मन में उठ रहे हैं।
एक तरफ जहां कोविड-19 की कुछ वैक्सीन पहले ही परीक्षण के तरीके और अंतिम चरण में पहुंच चुकी है कहीं और अंतिम चरण के पास ही हैं ऐसे में वैक्सीन बनाने की दौड़ काफी दिलचस्प हो चुकी है। वैक्सीनेशन की।
एक तरफ जहां कोविड-19 की कुछ वैक्सीन पहले ही परीक्षण के तरीके और अंतिम चरण में पहुंच चुकी है कहीं और अंतिम चरण के पास ही हैं ऐसे में वैक्सीन बनाने की दौड़ काफी दिलचस्प हो चुकी है। वैक्सीनेशन की।
लेकिन इन सबके बीच पहले कुछ महीनों में वैक्सीन को लेकर स्वभाविक और स्वीकृति के बारे में भी चिंता जताई जा चुकी हैं।
साल 2019 में द लेसेट पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के अनुसार,वैक्सीन हिचकिचाहट यानी टीके को नामंजूर करना या टिके को स्विकार करने में देरी दिखाने की समस्या तब से जारी है जब पहली बार किसी टिके का विकास हुआ था।
हालांकि अब सोशल मीडिया की मौजूदगी के कारण टीकाकरण विरोधी( एंटीवैक्सीनेशन) संदेश पहले से ही कहीं अधिक तेजी से दुनिया भर में फैल रहे हैं। लेसेट के आर्टिकल में यह भी सुझाव दिया गया था कि वैक्सीन की सुरक्षा सामान्य और विश्वास और षड्यंत्र से भरे कहीं सिद्धांत जिनके बारे में लगातार चर्चा होती हैं इस तरह की समस्याओं के कारण बहुत से लोगों को वैक्सीन को स्विकार करने में मुश्किल आती हैं।
"इस आर्टिकल में हम आपको वैक्सीन यानी टीके से जुड़े सबसे कॉमन मिथक और उनके पीछे की सच्चाई के बारे में बता रहे हैं "
मिथक 1: इस बात के कोई सबूत नहीं होते कि वैक्सीन या टीका सुरक्षित है।
हकीकत: आम लोगों के लिए उपलब्ध होने से पहले टीके के कई परीक्षणोंं से गुजरना पड़ताा है।जिसमें टिके की सुरक्षा और प्रतिरक्षा जनत्व दोनों चीजें शामिल होती हैं इन परीक्षणों व अध्ययनों के नतीजे को विभिन्न पत्रिकाओं और सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाता है ताकि कोई भी इनके बारे में पढ़ सके।
रश यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख बताता है कि टीके की क्षमता प्रभाव और सुरक्षा के बारे में जानने का सबसे अच्छा तरीका है की बीमारी के खिलाफ टीका उपलब्ध है उस बीमारी के मामलों की संख्या में टीका उपलब्ध होने के बाद कितनी कमी देखने को मिली है।
मिथक 2: उचित स्वच्छता और साफ-सफाई के जरिए बीमारी को खत्म किया जा सकता है।
हकीकत: विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के अनुसार पिछली घटनाओं से पता चला है कि अगर आम टीकाकरण करवाने से बचते हैं या इससे भी बेहतर कि हम टीकाकरण बिल्कुल बंद कर देते हैं तो कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो फिर से वापस आएंगे और महामारी का रूप ले लेंगी।
सबसे ताजा उदाहरण ब्रिटेन का है जिसे डब्ल्यूएचओ खसरे से मुक्त देश नहीं मानता है क्योंकि वहां पर है MMR टीकाकरण में कमी और खसरे के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है।
यहां इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि पूरी तरह से सफाई और स्वच्छता ने सुनिश्चित करना एक मुश्किल काम है अच्छी तरह से साबुन पानी या सैनिटाइजर से हाथ साफ करने,मास्क लगाने और स्वच्छता के महत्व के बारे में व्यापक जानकारी दिए जाने के बावजूद पिछले 8 महीनों में covid-19 के मामले में लगातार बढ़ोतरी हुई।
वास्तव में मास्क के उपयोग जैसे एहतियाती उपायों को लेकर साजिश के सिद्धांत भी देखने को मिल रहे जबकि अनुसंधान से पता चला कि मास्क का इस्तेमाल covid-19 को कम करने में प्रभावी हो सकता है।
मिथक 3: टीकाकरण नहीं होने से सिर्फ मुझ पर ही प्रभाव पड़ेगा।
हकीकत: खसरे की हालिया प्रकोप से यह बात स्पष्ट है कि यह दवा वास्तव में सही नहीं है बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए इस सत्र में कुछ निश्चित संख्या में लोगों को टीकाकरण किया जाना जरूरी है तभी हार्ड इम्यूनिटी को हासिल किया जा सकता है जितने अधिक लोग वैक्सिंग को खारिज करते हैं उतना ही अधिक बीमारी के नए प्रकोप की आशंका बढ़ जाती है।
मिथक 4: बहुत सारे लोगों को वह बीमारी भी हो जाती है जिसका टीका लगा होता है।
हकीकत: वैक्सीन रोगाणु या हिस्से के कमजोर,निष्क्रिय या मृत संस्करण से बनता है। किसी विशिष्ट व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद आपका शरीर व्यक्ति द्वारा टारगेट की गई बीमारी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है बीमारी के विकास के संपर्क में आए बिना ही ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि वैक्सीन आपके इम्यूून सिस्टम को विश्वास दिलाता है कि आप बीमारी के संपर्क में आए हैं।
हालांकि इसमें एक पेंच भी है सभी टीके 100 प्रतिशत प्रभावी नहीं होते हैं इसलिए यदि कोई टीका 99% प्रभावी है तो टीका लगने के बाद भी 1% लोगों की प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होगी। ऐसे लोग बीमारी के लिए अति संवेदनशील होते हैं और उन्हें बीमारी हो सकती हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि टीका प्रभावी नहीं था। इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है मान लीजिए 1000 छात्रों की क्लास में 5 छात्रों को छात्रों को छोड़कर बाकी सभी किसी विशेष बीमारी के खिलाफ टीका लगा चुके हैं और 99% से अधिक प्रभावी है अगर क्लास के छात्र किसी रोगाणुओं से संपर्क में आते हैं तो वह 5 छात्र जीने टीका नहीं लगा उन्हें रोग हो जाएगा और शेष 995 छात्रों में से 1% से भी कम छात्रों को हो जाएगा। ऐसे में कुल मामलों की संख्या 1000 की बजाय सिर्फ 12 होगी।
मिथक 5: वैक्सीन में ऐसे तत्व होते हैं जो शरीर को हानि पहुंचा सकते हैं।
हकीकत: विशेषज्ञ बताते हैं कि कोई भी चीज या सामग्री व्यक्ति को हानि पहुंचा सकती हैं अगर उच्च मात्रा में उसका सेवन किया जाए। वैक्सीन में फॉर्म एल्डिहाइड और एल्यूमीनियम जेसे कुछ तत्व होते हैं लेकिन वह अधिकतम कम मात्रा में होते हैं और टिके को सुरक्षित बनाने के लिए इनकी आवश्यकता होती है। वास्तव में हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इन रसायनों की बहुत अधिक मात्रा के संपर्क में आते हैं।
उदाहरण के लिए हमारे हर दिन के भोजन और पीने के पानी में लगभग 30 से 50 मिलीग्राम एल्युमीनियम मौजूद होता है जिसका सेवन हम करते हैं जबकि टीके की एक खुराक में 0.125 से 0. 625 मिलीग्राम से अधिक एलुमिनियम नहीं होता है। टिके के रसायन हमें नूकसान नहीं करते है।
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